यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन
ग़ज़ल
आसों का महल ढह गया
फूट-फाट के
बराबर हो गया सब कुछ टूट-टाट के
मन में भरी-भरी साधें कितनी थीं
जो आहें बनकर निकलीं
छूट-छाट के
दर पर गया तब उसके
टाटवालों ने
उसी दम मारकर
रख दिया पीट-पाट के
क़ुरबत में ग़ुरबत
घुल जाय तेरी मेरी
अब रातें धूम-धाम की, दिन अब
ठाट-बाट के
बस, चुप
कर " अकेला ", ज़िन्दगी की बोल
बिल्ली की तरह साफ़ कर दी चाट-चाट के
" अकेला "
To index of modern poetry.
To index of मल्हार.
Drafted 7-16 Dec 2002. Posted 16 Dec 2002. Corrected 2
April 2003.